Thursday 22 January 2015

11- आठ सिद्धियां, नौ निधियां तथा गौण सिद्धियां, चौपाई:-अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन्ह जानकी माता ।।



आठ सिद्धियां, नौ निधियां तथा गौण सिद्धियां

  चौपाई:-अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन्ह जानकी माता ।।  (31)

यह हनुमान चालीसा की एक चौपाई  जिसमे तुलसीदास जी लिखते है कि हनुमानजी अपने भक्तो को आठ प्रकार की सिद्धयाँ तथा नौ प्रकार की निधियाँ प्रदान कर सकते हैं ऐसा सीतामाता ने उन्हे वरदान दिया ।  यह अष्ट सिद्धियां बड़ी ही चमत्कारिक होती है जिसकी बदौलत हनुमान जी ने असंभव से लगने वाले काम आसानी से सम्पन किये थे। आइये अब हम आपको इन अष्ट सिद्धियों, नौ निधियों और भगवत पुराण में वर्णित दस गौण सिद्धियों के बारे में विस्तार से बताते है।

आठ सिद्धयाँ :
हनुमानजी को  जिन आठ सिद्धियों का स्वामी तथा दाता बताया गया है वे सिद्धियां इस प्रकार हैं-

1.अणिमा:  इस सिद्धि के बल पर हनुमानजी कभी भी अति सूक्ष्म रूप धारण कर सकते हैं।
इस सिद्धि का उपयोग हनुमानजी तब किया जब वे समुद्र पार कर लंका पहुंचे थे। हनुमानजी ने अणिमा सिद्धि का उपयोग करके अति सूक्ष्म रूप धारण किया और पूरी लंका का निरीक्षण किया था। अति सूक्ष्म होने के कारण हनुमानजी के विषय में लंका के लोगों को पता तक नहीं चला।
2. महिमा:  इस सिद्धि के बल पर हनुमान ने कई बार विशाल रूप धारण किया है।
जब हनुमानजी समुद्र पार करके लंका जा रहे थे, तब बीच रास्ते में सुरसा नामक राक्षसी ने उनका रास्ता रोक लिया था। उस समय सुरसा को परास्त करने के लिए हनुमानजी ने स्वयं का रूप सौ योजन तक बड़ा कर लिया था।
इसके अलावा माता सीता को श्रीराम की वानर सेना पर विश्वास दिलाने के लिए महिमा सिद्धि का प्रयोग करते हुए स्वयं का रूप अत्यंत विशाल कर लिया था।
3. गरिमा:  इस सिद्धि की मदद से हनुमानजी स्वयं का भार किसी विशाल पर्वत के समान कर सकते हैं।
गरिमा सिद्धि का उपयोग हनुमानजी ने महाभारत काल में भीम के समक्ष किया था। एक समय भीम को अपनी शक्ति पर घमंड हो गया था। उस समय भीम का घमंड तोड़ने के लिए हनुमानजी एक वृद्ध वानर रूप धारक करके रास्ते में अपनी पूंछ फैलाकर बैठे हुए थे। भीम ने देखा कि एक वानर की पूंछ से रास्ते में पड़ी हुई है, तब भीम ने वृद्ध वानर से कहा कि वे अपनी पूंछ रास्ते से हटा लें। तब वृद्ध वानर ने कहा कि मैं वृद्धावस्था के कारण अपनी पूंछ हटा नहीं सकता, आप स्वयं हटा दीजिए। इसके बाद भीम वानर की पूंछ हटाने लगे, लेकिन पूंछ टस से मस नहीं हुई। भीम ने पूरी शक्ति का उपयोग किया, लेकिन सफलता नहीं मिली। इस प्रकार भीम का घमंड टूट गया।
4. लघिमा:  इस सिद्धि से हनुमानजी स्वयं का भार बिल्कुल हल्का कर सकते हैं और पलभर में वे कहीं भी आ-जा सकते हैं।
जब हनुमानजी अशोक वाटिका में पहुंचे, तब वे अणिमा और लघिमा सिद्धि के बल पर सूक्ष्म रूप धारण करके अशोक वृक्ष के पत्तों में छिपे थे। इन पत्तों पर बैठे-बैठे ही सीता माता को अपना परिचय दिया था।
5. प्राप्ति:  इस सिद्धि की मदद से हनुमानजी किसी भी वस्तु को तुरंत ही प्राप्त कर लेते हैं। पशु-पक्षियों की भाषा को समझ लेते हैं, आने वाले समय को देख सकते हैं।
रामायण में इस सिद्धि के उपयोग से हनुमानजी ने सीता माता की खोज करते समय कई पशु-पक्षियों से चर्चा की थी। माता सीता को अशोक वाटिका में खोज लिया था।
6. प्राकाम्य:  इसी सिद्धि की मदद से हनुमानजी पृथ्वी गहराइयों में पाताल तक जा सकते हैं, आकाश में उड़ सकते हैं और मनचाहे समय तक पानी में भी जीवित रह सकते हैं। इस सिद्धि से हनुमानजी चिरकाल तक युवा ही रहेंगे। साथ ही, वे अपनी इच्छा के अनुसार किसी भी देह को कारण कर सकते हैं। इस सिद्धि से वे किसी भी वस्तु को चिरकाल तक प्राप्त कर सकते हैं।
इस सिद्धि की मदद से ही हनुमानजी ने श्रीराम की भक्ति को चिरकाल का प्राप्त कर लिया है।
7. ईशित्व:  इस सिद्धि की मदद से हनुमानजी को दैवीय शक्तियां प्राप्त हुई हैं।
ईशित्व के प्रभाव से हनुमानजी ने पूरी वानर सेना का कुशल नेतृत्व किया था। इस सिद्धि के कारण ही उन्होंने सभी वानरों पर श्रेष्ठ नियंत्रण रखा। साथ ही, इस सिद्धि से हनुमानजी किसी मृत प्राणी को भी फिर से जीवित कर सकते हैं।
8. वशित्व:  इस सिद्धि के प्रभाव से हनुमानजी जितेंद्रिय हैं और मन पर नियंत्रण रखते हैं।
वशित्व के कारण हनुमानजी किसी भी प्राणी को तुरंत ही अपने वश में कर लेते हैं। हनुमान के वश में आने के बाद प्राणी उनकी इच्छा के अनुसार ही कार्य करता है। इसी के प्रभाव से हनुमानजी अतुलित बल के धाम हैं।

नौ निधियां  : -
हनुमान जी प्रसन्न होने पर जो नव निधियां भक्तों को देते है वो इस प्रकार है

1. पद्म निधि:- पद्मनिधि लक्षणो से संपन्न मनुष्य सात्विक होता है तथा स्वर्ण चांदी आदि का संग्रह करके दान करता है ।

2. महापद्म निधि:- महाप निधि से लक्षित व्यक्ति अपने संग्रहित धन आदि का दान धार्मिक जनों में करता है ।

3. नील निधि:- निल निधि से सुशोभित मनुष्य सात्विक तेजसे संयुक्त होता है। उसकी संपति तीन पीढीतक रहती है।

4. मुकुंद निधि:- मुकुन्द निधि से लक्षित मनुष्य रजोगुण संपन्न होता है वह राज्यसंग्रह में लगा रहता है।

5. नन्द निधि:- नन्दनिधि युक्त व्यक्ति राजस और तामस गुणोंवाला होता है वही कुल का आधार होता है ।

6. मकर निधि:- मकर निधि संपन्न पुरुष अस्त्रों का संग्रह करनेवाला होता है ।

7. कच्छप निधि:- कच्छप निधि लक्षित व्यक्ति तामस गुणवाला होता है वह अपनी संपत्ति का स्वयं उपभोग करता है ।

8. शंख निधि:- शंख निधि एक पीढी के लिए होती है।

9. खर्व निधि:- खर्व निधिवाले व्यक्ति के स्वभाव में मिश्रीत फल दिखाई देते हैं ।

दस गौण सिद्धियां : इसके अलावा भगवत पुराण में भगवान कृष्ण ने दस गौण सिद्धियों का वर्णन और किया है जो निम्न प्रकार है
1.  अनूर्मिमत्वम्
2.  दूरश्रवण
3.  दूरदर्शनम्
4.  मनोजवः
5.  कामरूपम्
6.  परकायाप्रवेशनम्
7.  स्वछन्द मृत्युः
8.  देवानां सह क्रीडा अनुदर्शनम्
9.  यथासंकल्पसंसिद्धिः
10. आज्ञा अप्रतिहता गतिः
सोलह सिद्धिया:-
गौण सिद्धियों का वर्णन और किया है जो निम्न प्रकार है
1. वाक् सिद्धि:- जो भी वचन बोले जाए वे व्यवहार में पूर्ण हो, वह वचन कभी व्यर्थ न. जाये, प्रत्येक शब्द का महत्वपूर्ण अर्थ हो, वाक् सिद्धि युक्त व्यक्ति में श्राप अरु वरदान देने की क्षमता होती हैं!
2. दिव्य दृष्टि:- दिव्यदृष्टि का तात्पर्य हैं कि जिस व्यक्ति के सम्बन्ध में भी चिन्तन किया जाये, उसका भूत, भविष्य और वर्तमान एकदम सामने आ जाये, आगे क्या कार्य करना हैं, कौन सी घटनाएं घटित होने वाली हैं, इसका ज्ञान होने पर व्यक्ति दिव्यदृष्टियुक्त महापुरुष बन जाता हैं!
3. प्रज्ञा सिद्धि:- प्रज्ञा का तात्पर्य यह हें की मेधा अर्थात स्मरणशक्ति, बुद्धि, ज्ञान इत्यादि! ज्ञान के सम्बंधित सारे विषयों को जो अपनी बुद्धि में समेट लेता हें वह प्रज्ञावान कहलाता हें! जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से सम्बंधित ज्ञान के साथ-साथ भीतर एक चेतनापुंज जाग्रत रहता हें!
4. दूरश्रवण: - इसका तात्पर्य यह हैं की भूतकाल में घटित कोई भी घटना, वार्तालाप को पुनः सुनने की क्षमता!
5. जलगमन: - यह सिद्धि निश्चय ही महत्वपूर्ण हैं, इस सिद्धि को प्राप्त योगी जल, नदी, समुद्र पर इस तरह विचरण करता हैं मानों धरती पर गमन कर रहा हो!
6. वायुगमन: -इसका तात्पर्य हैं अपने शरीर को सूक्ष्मरूप में परिवर्तित कर एक लोक से दूसरे लोक में गमन कर सकता हैं, एक स्थान से दूसरे स्थान पर सहज तत्काल जा सकता हैं!
7. अदृश्यकरण: - अपने स्थूलशरीर को सूक्ष्मरूप में परिवर्तित कर अपने आप को अदृश्य कर देना! जिससे स्वयं की इच्छा बिना दूसरा उसे देख ही नहीं पाता हैं!
8. विषोका: - इसका तात्पर्य हैं कि अनेक रूपों में अपने आपको परिवर्तित कर लेना! एक स्थान पर अलग रूप हैं, दूसरे स्थान पर अलग रूप हैं!
9. देवक्रियानुदर्शन:- इस क्रिया का पूर्ण ज्ञान होने पर विभिन्न देवताओं का साहचर्य प्राप्त कर सकता हैं! उन्हें पूर्ण रूप से अनुकूल बनाकर उचित सहयोग लिया जा सकता हैं!
10. कायाकल्प:- कायाकल्प का तात्पर्य हैं शरीर परिवर्तन! समय के प्रभाव से देह जर्जर हो जाती हैं, लेकिन कायाकल्प कला से युक्त व्यक्ति सदैव तोग्मुक्त और यौवनवान ही बना रहता हैं!
11. सम्मोहन: - सम्मोहन का तात्पर्य हैं कि सभी को अपने अनुकूल बनाने की क्रिया! इस कला को पूर्ण व्यक्ति मनुष्य तो क्या, पशु-पक्षी, प्रकृति को भी अपने अनुकूल बना लेता हैं!
12. गुरुत्व: - गुरुत्व का तात्पर्य हैं गरिमावान! जिस व्यक्ति में गरिमा होती हैं, ज्ञान का भंडार होता हैं, और देने की क्षमता होती हैं, उसे गुरु कहा जाता हैं! और भगवन कृष्ण को तो जगद्गुरु कहा गया हैं!
13. पूर्ण पुरुषत्व:- इसका तात्पर्य हैं अद्वितीय पराक्रम और निडर, एवं बलवान होना! श्रीकृष्ण में यह गुण बाल्यकाल से ही विद्यमान था! जिस के कारन से उन्होंने ब्रजभूमि में राक्षसों का संहार किया! तदनंतर कंस का संहार करते हुए पुरे जीवन शत्रुओं का संहार कर आर्यभूमि में पुनः धर्म की स्थापना की!
14. सर्वगुण संपन्न:-जितने भी संसार में उदात्त गुण होते हैं, सभी कुछ उस व्यक्ति में समाहित होते हैं, जैसे दया, दृढ़ता, प्रखरता, ओज, बल, तेजस्विता, इत्यादि! इन्हीं गुणों के कारण वह सारे विश्व में श्रेष्ठतम व अद्वितीय मन जाता हैं, और इसी प्रकार यह विशिष्ट कार्य करके संसार में लोकहित एवं जनकल्याण करता हैं!
15. इच्छा मृत्यु:-इन कलाओं से पूर्ण व्यक्ति कालजयी होता हैं, काल का उस पर किसी प्रकार का कोई बंधन नहीं रहता, वह जब चाहे अपने शरीर का त्याग कर नया शरीर धारण कर सकता हैं!
16. अनुर्मि:- अनुर्मि का अर्थ हैं-जिस पर भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी और भावना-दुर्भावनाका कोई प्रभाव न हो!


सभी रेमियोँ को मेरा यानि पेपसिह राठौङ तोगावास कि तरफ से सादर प्रणाम। मेरे द्वारा संचालित ईस togawas.com peptogawas.com 

Saturday 30 August 2014

10- सावन सोमवार - क्या करें, कैसे करें: श्रावण में शिव पूजा से करें सभी अरिष्टों का निवारण

सावन सोमवार - क्या करें, कैसे करें: श्रावण में शिव पूजा से करें सभी अरिष्टों का निवारण

श्रावण मास और भगवान शिव

सनातन धर्म में सभी प्रमुख देवी - देवताओं के लिए कोई ना कोई दिन, सप्ताह, पक्ष या माह निर्धारित है। श्रावण माह के पूरे ३० दिन देवों के देव भगवान शिव को समर्पित हैं। महाभारत कथा के अनुसार इसी माह में भगवान शिव ने समुद्र मंथन के दौरान निकले हलाहल को पूरे ब्रह्माण्ड की रक्षा के लिए स्वयं पी लिया था।

क्या है महत्व

कहा जाता है कि हलाहल पीने के कारण भगवान शिव अत्यंत तप्त हो गए, ज़हर के प्रभाव से वे बहुत व्याकुल हो गए, शीतलता प्राप्त करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने बहुत प्रयत्न किये परन्तु उन्हें आराम नहीं मिल सका। अंततः उन्होंने मस्तक पर अमृत स्वरूप अत्यंत ही शीतल चन्द्रमा को धारण किया जिससे उन्हें शीतलता प्राप्त हुई। 
चूँकि भगवान शिव ने समस्त चर - अचर प्राणियों की रक्षा के लिए अपने को तप्त कर दिया था, अतः उनके प्रति आस्था, भक्ति और कृतज्ञता प्रकट करने हेतु हम आज भी भगवान शिव का शीतलता प्रदान करने वाली चीजों से अभिषेक करते हैं।

दूसरी तरह से यदि देखा जाए तो भगवान शिव का संहारक रूप रूद्र है, रूद्र अर्थात अग्नि। मानव मात्र विभिन्न प्रकार की अग्नि से तप्त है जैसे रोग, शत्रु, आर्थिक कष्ट, मानसिक कष्ट ये सभी प्रकार के कष्ट मनुष्यों को तप्त करते रहें हैं। सभी प्रकार की कष्ट रूपी अग्नि किसी ना किसी प्रकार से रूद्र का ही स्वरूप है, क्योंकि शिव पुराण के अनुसार शिव ही ब्रह्म रूप में सृष्टि के रचयिता, विष्णु रूप में पालनकर्ता तथा रूद्र रूप में संहार कर्ता हैं। इसी कष्ट रूपी अग्नि अर्थात रूद्र को शांत करने के लिए हम उन्हें अभिषेक अर्थात स्नान कराते हैं।


क्या है लाभ
भावहिं मेटि सकहि त्रिपुरारी ! अर्थात होनी को कोई टाल सकने का सामर्थ्य रखता है तो भगवान शिव ही हैं। किसी भी ग्रह का दुष्प्रभाव क्यों ना हो उसके प्रभाव को कम या समाप्त करने का अंतिम उपाय भगवान शिव की आराधना ही है। प्राणी मात्र के जितने भी सांसारिक कष्ट हैं उनका कारण किसी ना किसी ग्रह का दुष्प्रभाव होना ही है, जो सबसे अधिक पाप ग्रह अर्थात कष्ट देने वाले ग्रह हैं वे हैं - शनि, राहु और केतु। किसी भी व्यक्ति की कुंडली में अधिकांशतः और सबसे दुष्कर जितने भी योग हैं वे इन्ही के कारण बनते हैं, शनि साढ़े साती, ढैया, काल सर्प, केपद्रुम योग, विष्कुम्भ योग, बालारिष्ट योग, मारकेश योग जैसे अत्यंत ही कष्टकारी योगों का निदान केवल और केवल भगवान शिव की आराधना या अनुष्ठान ही है। आप चाहे सांसारिक कष्टों से छुटकारा पाना चाहते हों या मोक्ष, शिव अंतिम गंतव्य हैं।

कैसे करें पूजा
भगवान शिव को भोले बाबा भी कहा जाता है, भोले अर्थात अत्यंत सरल। इनकी पूजा के लिए किसी भी बहुमूल्य वस्तु या जटिल विधि - विधान की आवश्यकता नहीं होती, भगवान शिव की पूजा तो अत्यंत ही सुलभ और बिना खर्चे वाली वस्तुओं से संपन्न हो जाती है। आदि गुरु शंकराचार्य ने तो मानस पूजा की विधि बतायी है, मानस पूजा अर्थात मन से ही सबकुछ अर्पित करने की विधि। इस विधि में हम भौतिक रूप से जितनी वस्तुओं का प्रयोग पूजा में करते हैं जैसे - फूल, चन्दन, धूप, दीप नैवैद्य इत्यादि इन सभी वस्तुओं को मानसिक रूप से अर्पित करते हैं।

भगवान शिव की प्रिय वस्तुएँ

भगवान शिव को गंगा जल सबसे प्रिय है, क्योंकि उन्होंने अपनी अत्यधिक तप्तता के समय उन्हें और चन्द्रमा को धारण किया था, अतः भगवान शिव का गंगा जल से नित्य प्रातः अभिषेक सर्वोत्तम है।
भगवान शिव को बिल्व पत्र भी अत्यंत प्रिय है, बिल्व पत्र के बारे में कहा गया है -
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रम च त्रियायुधम्, त्रिजन्म पाप संहारम एकबिल्वम शिवार्पणम।
ये दो वस्तुएं भोले नाथ को अत्यंत प्रिय हैं, सामान्य मनुष्य सिर्फ इन्ही दो वस्तुओं से भी नियमित भगवान शिव की आराधना कर सकता हैं, गंगा जल से अभिषेक करते समय सिर्फ उनके पंचाक्षर मन्त्र "ॐ नमः शिवाय" का उच्चारण ही प्रयाप्त है। इसके अलावा यदि आप चाहें तो गंगा जल में गाय का दूध, थोड़ी शहद, थोड़ा गाय का ही शुद्ध घी और श्वेत चन्दन मिलाकर उपरोक्त पंचाक्षर मन्त्र से भगवान शिव का अभिषेक करें और उसके उपरांत बिल्व पत्र अर्पित करें। यह ध्यान रखे की बिल्व पत्र नए हों, कोमल हों, छिद्र रहित हों और पत्ते टूटे हुए ना हों।

पूजा के लिए दिन - वैसे तो भगवान शिव की पूजा के लिए श्रावण मास में कोई भी दिन देखने की आवश्यकता नहीं परन्तु उनका सबसे प्रिय ग्रह चन्द्रमा है, अतः चन्द्रमा से सम्बंधित दिन सोमवार अत्यंत ही महत्वपूर्ण माना जाता है।
पूजा के लिए समय- भगवान शिव के लिए प्रातः काल और प्रदोष काल अर्थात गोधूलि बेला सर्वोत्तम मानी जाती है।
पूजा के लिए मुहूर्त- भगवान शिव की सामान्य पूजा के लिए किसी भी मुहूर्त की आवश्यकता नहीं है परन्तु यदि किसी विशेष प्रयोजन से कोई अनुष्ठान जैसे - रुद्राभिषेक, रूद्र पाठ, महामृत्युंजय जैसे अनुष्ठान करना चाहते हैं तो अन्य मास में तो मुहूर्त देखना होता है, परन्तु श्रावण माह में भगवान शिव की पूजा या अनुष्ठान दोनों के लिए ही मुहूर्त देखने की कोई आवश्यकता नहीं होती है।

पूजा के लिए मन्त्र/स्तुति- भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उनके नाम पर आधारित उनका पंचाक्षर मंत्र "ॐ नमः शिवाय।" ही पर्याप्त है परन्तु यदि आप रूद्र गायत्री का जप यथा शक्ति कर सकें तो अत्यंत उपयोगी होगा-
"ॐ तद्पुरुषाय विदमहे, महादेवाय धीमहि, तन्नो रुद्रः प्रचोदयात।"
इसके साथ ही उनकी स्तुति में "ॐ नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय …… " या तुलसी दास रचित रुद्राष्टकम "नमामि शमीशान निर्वाण रूपं, विभु व्यापकं ब्रह्मवेद स्वरूपं.......... " का पाठ भी अत्यंत उपयोगी है।

पूजा के लिए विशेष- शिव भक्तों तथा किसी भी कष्ट से पीड़ित व्यक्तियों के लिए भगवान शिव की आराधना अत्यंत ही श्रेयस्कर है। मैंने एक सामान्य व्यक्ति के लिए जिसके पास घर - गृहस्थी तथा कार्य - व्यवसाय के साथ - साथ कैसे कम समय में आसान तरीके से भगवान शिव की आराधना और उसका लाभ उठाते हुए इस दुष्कर जीवन पथ पर आगे बढ़ने का उपाय सुझाने का प्रयत्न किया। भगवान शिव के लिए आपकी सच्ची श्रद्धा ही पर्याप्त है। ऊपर लिखी पूजा आप स्वयं कर सकते हैं इसके लिए किसी विद्वान की ज़रुरत नहीं, परन्तु विशेष अनुष्ठान जैसे - रुद्राभिषेक, रूद्र पाठ, महामृत्युंजय इत्यादि किसी विद्वान के द्वारा ही कराएं।

किसी और शंका या समाधान के लिए हमें लिखें।
ॐ नमः शिवाय। 

Friday 25 July 2014

9-अंग फड़कने का महत्व



अंग फड़कने का महत्व

अंगों के फड़कने का महत्व प्राचीन समय से ही चला आ रहा है.प्रत्येक शास्त्र या विश्व का कोई भी व्यक्ति इस
विज्ञान से थोडा बहुत परिचित है तथा घर परिवार या समाज में सभी इसके फल को जानते है.
दायीं आँख ऊपर की ओर के फलक में फड़कती है तो धन,कीर्ति आदि की वृद्धि होती है.नौकरी में पदोन्नति होती है नीचे का फलक फड़कता है तो अशुभ होने की संभावना रहती है.
बाँयी आँख-का उपरी फलक फड़कता है तो दुश्मन से और अधिक दुश्मनी हो सकती है.नीचे का फलक फड़कता है तो किसी से बेवजह बहस हो सकती है और अपमानित होना पड़ सकता है.
बाँयी आँख की नाक की ओर का कोना फड़कता है जिसका फल शुभ होता है.पुत्र प्राप्ति की सूचना मिल सकती है.या किसी प्रिय व्यक्ति से मुलाक़ात
हो सकती है. दांयी आँख फड़कती है तो यह शुभ फलदायक होता है.लेकिन अगर
किसी स्त्री की दांयी आँख फड़कती है तो- उसे अशुभ माना जाता है. दोनों आँखे एक साथ फड़कती हो तो चाहे वह
स्त्री की हो या पुरुष की, उनका फल एक जैसा ही होता है. किसी बिछुड़े हुए अच्छे मित्र से मुलाक़ात हो सकती है.
दांयी आँख पीछे की ओर फड़कती है- तो इसका फल अशुभ होता है. बाँयी आँख ऊपर की और फड़कती हो तो इसका फल शुभ होता है.स्त्री की बाँयी आँख
फड़कती हो तो शुभ फल होता है.
कंठ गला तेज गति से फड़कता है- तो स्वादिष्ट और मनपसंद भोजन मिलता है.किसी स्त्री का कंठ फड़कता है तो उसे गले आभूषण प्राप्त होता है.
कंठ का बांया भाग फड़कता है तो- धन की उपलब्धि कराता है.किसी स्त्री के कंठ के निचले हिस्से का फड़कना कम मूल्य केआभूषणों की प्राप्ति की सूचना देता है.कंठ का उपरी भाग फड़कता है तो सोने की माला मिलने की संभावना बड जाति है.कंठ की घाटी के नीचे फड़कन
होती है तो किसी हथियार से घायल होने
की संभावना रहती है.
सिर के बाँयी ओर के हिस्से में फड़कन हो तो- इसे बहुत ही शुभ माना गया है.आने वाले दिनों में यात्रा करनी पड़ सकती है. यदि आपकी यात्रा बिजनेस से सम्बंधित है तो ज्यादा नहीं तो थोडा बहुत लाभ अवश्य होगा.आपके सिर
के दांयी ओर के हिस्से में फड़कन है तो यह शुभ फलदायक स्थिति है आपको धन,किसी राज सम्मान, नौकरी में पदोंन्नती, किसी प्रतियोगिता में पुरस्कार, लाटरी में जीत,भूमि लाभ
आदि की प्राप्ति हो सकती है.
आपके सिर का पिछला हिस्सा फड़कता है तो समझ लीजिए आपका विदेश जाने का योग बन रहा है.और वंहा आपको धन की प्राप्ति भी होने वाली है.लेकिन अपने देश में लाभ की कोई संभावना नहीं है आपके सिर के अगले हिस्से में फड़कन हो रही है तो यह स्थिति स्वदेश या परदेश दोनों में ही धन मान प्राप्ति का कारण बन सकती है.
आपका सम्पूर्ण सिर फड़क रहा है तो यह सबसे अधिक शुभ स्थिति है आपको दुसरे का धन मिल सकता है,मुकद्दमे में
जीत हो सकती है.राजसम्मान मिल
सकता है.या फिर भूमि की प्राप्ति हो सकती है.
सम्पूर्ण मूँछो में फड़कन है तो- इसका फल बहुत ही शुभ माना गया है इससे दूध,दही,घी,धन धान्य का योग बनता है.अगर आपकी मूंछ का दांया हिस्सा फड़कता है तो इसे शुभ समझना चाहिए.
आपकी बाँयी मूंछ फड़कती है तो आपका किसी से बहस या झगड़ा हो सकता है.
आपके तालू में फड़कन है तो- यह आर्थिक लाभ का शुभ संकेत है.दांया तालू में फड़कन है तो यह बिमारी की सूचना दे रहा है.बांये तालू में फड़कन है तो आप किसी अपराध में जेल जा सकते है.
आपके दांये कंधे में फड़कन में फड़कन है तो- आपको धन, सम्मान और बिछुड़े
हुए भाई से मिलाप हो सकता है.बांया कंधा फड़क रह है तो रक्त विकार या वात सम्बन्धी विकार उत्पन्न हो सकते है.
आपके दांये घुटने में फड़कन है तो- आपको सोने की प्राप्ति हो सकती है.और यदि दांये घुटने का निचला हिस्सा फड़क रहा है तो यह शत्रु पर विजय हासिल करने का संकेत है.आपके बांये घुटने का निचला हिस्सा फड़क रहा है
तो आपके कार्य पूरा होने की संभावना बड जाति है.बांये घुटने
का उपरी हिस्सा फड़क रहा है तो इसका फल कुछ
नहीं होता है.
आपके पेट में फड़कन है तो- यह अन्न
की समृद्धि की सूचना देता है.यदि पेट
का दांया हिस्सा फड़क रहा है तो घर में धन दौलत
की वृद्धि होगी सुख और
खुशहाली बडती है.अगर आपके पेट
का बांया हिस्सा फड़कता है तो धन
समृद्धि धीमी गति से बडती है वैसे यह शुभ नहीं है. पेट का उपरी भाग
फड़कता है तो यह अशुभ होता है.लेकिन पेट के नीचे का भाग फड़कता है तो स्वादिष्ट भोजन की प्राप्ति होती है.
पीठ दांयी ओर से फड़क रही है तो- धन धान्य की वृद्धि हो सकती है लेकिन
पीठ के बांये भाग का फडकना ठीक
नहीं होता है.मुकद्दमे में हार या किसी से
झगड़ा हो सकता है.बाँयी पीठ में फड़कन धीमी हो तो परिवार में कन्या का जन्म होना संभव है और फड़कन तेज हो तो अपरिपक्व यानि समय से पहले ही प्रसव हो सकता है.पीठ का उपरी हिस्सा फड़क रहा हो तो धन
की प्राप्ति होती है ।